राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तमिलनाडु सरकार ने त्रिभाषिक प्रणाली का विरोध किया है।
"मैं हमेशा से ये कहता आया हूँ, कि यदि एक देश के दो लोगों को आपस मे बात करने में किसी अन्य देश की भाषा का प्रयोग करना पड़ता है तो उस देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत नही है।"
आज हमारे देश में अंग्रेजी का वर्चस्व इसी बात को दर्शाता है।
तमिलनाडु सरकार का जो प्रेम अंग्रेजी और तमिल के लिए है, वो हिंदी और तमिल के लिए होना चाहिए, लेकिन नही है। और आज़ादी के पहले से ही यह अंतर्विरोध चला आ रहा है, शायद यही वजह रही कि सरकार व पालिसी निर्माताओं द्वारा त्रिभाषिक शिक्षा पर जोर दिया गया। ताकि हिंदी भाषा को एक राष्ट्रीय भाषा के रूप में विकसित किये जाने के साथ साथ, हिंदी को अंग्रेजी के समक्ष खड़ा किया जा सके और देश में अंग्रेजी के वर्चश्व को धीरे धीरे समाप्त किया जा सके।
इस तरह के अंतर्विरोध होते रहे हैं और होते रहेंगे, परिवर्तनकारी निर्णय लेना हमेशा का कठिन होता है।
सरकार को अडिग रहना चाहिए, व नीति को सख्ती से धरातल पर ले जाने की योजना बनानी चाहिए।
ये मेरे अपने विचार हैं, आपका सर्मथन/असमर्थन स्वीकार है।
©रोहित त्रिपाठी रागेश्वर



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