Saturday, May 1, 2021
विद्रोह के स्वर
उठ रहे हैं विद्रोह के स्वर, खेतों में पड़ी धान की बालियों से।
खेतों में पड़ी धान की बालियों को पता चला है कि उन्हें
अभी-अभी अपनी जड़ से इसलिए अलग कर दिया गया
क्यूंकि उनको उगाने वाले किसान को अपना और अपने बच्चों का पेट पालना है।
खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं क्यूंकि उन्हें पता चला है-
कि उन्हें उनकी परालियों से भी अलग कर दिया जायेगा।
खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं क्यूंकि उन्हें पता चला है-
कि उन्हें मशीनों में डालकर उनकी चमड़ी उघेड़ी जायेगी।
खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं क्यूंकि उन्हें पता चला है-
कि परालियों से अलग करके मशीनों में डालकर उनकी चमड़ी उघेडकर,
उन्हें बेच दिया जायेगा, किसी और के हाथ।
उसके हाथ जिसने कभी खेतों मे धान की बुआई नही देखी
उसके हाथ जिसे ये भी नही पता की धान उगाने मे कितने दिन लगते हैं,
या फिर ये की ‘चावल’ धान की उघेड़ी हुयी चमड़ी की शक्ल को कहते हैं।
खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं इसलिए
क्यूंकि उन्हें पता चला है कि वो उसके हाथ बेचीं जा रही हैं
जो अक्सर अपनी प्लेट में भूख ज्यादा चावल ले लेता है
और फिर बचे हुए चावल को कूड़ेदान में डाल देता है|
खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह के स्वर ऊँचे कर रही हैं
इसलिए नही की उन्हे उनकी परालियों से अलग कर दिया जाएगा।
इसलिए भी नही कि उन्हें मशीन में डालकर उनकी चमड़ी उघेड़ी जाएगी।
इसलिए भी नही की उन्हें बेच किया जायेगा उसके हाथ जिसे उनके बारे में
कुछ नही पता|
धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं इसलिए क्यूंकि उन्हें पराली से अलग करके,
उनकी चमड़ी उघेड के, उन्हें किसी अनजान के हाथो बेचकर उन्हें बेवजह कूड़े में डाल दिया जाएगा,
और उनको उगाने वाला किसान उस दिन भी भूखे पेट सोयेगा
जब वो कूड़ेदान में सड़कर प्रकृति को नुकसान पहुंचा रही होंगी|
उठ रहे हैं विद्रोह के स्वर, इसलिए कि अब वक़्त आ गया है
विद्रोह का....
-रोहित त्रिपाठी रागेश्वर
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