मन के पन्ने
बहुत सी ख्वाहिशों का चांद हूं मैं #Education
Wednesday, May 12, 2021
बिजली का पहला झटका
Saturday, May 1, 2021
विद्रोह के स्वर
Friday, January 8, 2021
नैतिकता शिक्षा और उसके प्रयोग
हमारे स्कूलों और उच्च शिक्षा में काफी लंबे समय से नैतिकता के पाठ इस लिहाज के साथ रखे जा रहे हैं जिससे की हमारी आने वाली पीढ़ी अपनी जिम्मेदारी समझे और उसका निर्वहन करे।
![]() |
अब तक की शिक्षा प्रक्रिया में इसे पुराने तरीके से यानी भाषण और किताबों के माध्यम से सिखाने की कोशिश की गई है।
लेकिन नई शिक्षा नीति इसको गतिविधियों के माध्यम से सिखाने पर बल देती है। जो कि राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा पिछले लगभग 30 सालों से कहता रहा है।
मै पिछले 2 वर्षों से और हमारे जैसे कई संस्थानों के लोग इन प्रयोगों को वर्षों से करते आ रहे हैं लेकिन इस तरह के प्रयोग कितने सफल हुए हैं यह एक शोध का विषय है। मैं ये ज़रूर कह सकता हूं कि ये प्रयोग पूरी तरह से असफल नहीं रहे हैं। लेकिन मै ये कतई नहीं कहूंगा कि ये सफल हैं।
इस दौरान मुझे एक अनुभव ये हुआ है कि मनुष्य को अपनी नैतिक जिम्मेदारी तब समझ आती हैं जब उसे अपने तुक्षता का एहसास होता है।
जिस क्षण हमें अपनी अक्षुण्णता का एहसास होता है।
हमें अपनी सारी नैतिक जिम्मेदारियां स्वयं समझ में आ जाती हैं।
अतः मेरे अंतर्मन में पिछले कई महीनों से ये विचार चल रहा है कि हम किस तरह से पाठ्यक्रम में इस अक्षुण्णता के एहसास को समाहित करें जिससे कि उसके नकारात्मक प्रभाव पीढ़ियों पर प्रभावी ना हों। परन्तु पीढ़ियों को अपनी अक्षुण्णता का एहसास हो जाए, और उन्हें ये समझ आ जाए कि मनुष्य भी इस धरा पर सिर्फ उतने का अधिकारी है जितने कोई भी एक छोटे से छोटा प्राणी।
जिस वक्त हमारी समस्त मानव जाति को ये एहसा
स हो जाएगा, वही वो क्षण होगा जब हम इस पृथ्वी को नष्ट होने से रोक पाने के लिए पहला कदम बढ़ा रहे होंगे।
#birdflue
Monday, August 3, 2020
तृभाषिक शिक्षा प्रणाली (नई शिक्षा नीति 2020)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तमिलनाडु सरकार ने त्रिभाषिक प्रणाली का विरोध किया है।
"मैं हमेशा से ये कहता आया हूँ, कि यदि एक देश के दो लोगों को आपस मे बात करने में किसी अन्य देश की भाषा का प्रयोग करना पड़ता है तो उस देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत नही है।"
आज हमारे देश में अंग्रेजी का वर्चस्व इसी बात को दर्शाता है।
तमिलनाडु सरकार का जो प्रेम अंग्रेजी और तमिल के लिए है, वो हिंदी और तमिल के लिए होना चाहिए, लेकिन नही है। और आज़ादी के पहले से ही यह अंतर्विरोध चला आ रहा है, शायद यही वजह रही कि सरकार व पालिसी निर्माताओं द्वारा त्रिभाषिक शिक्षा पर जोर दिया गया। ताकि हिंदी भाषा को एक राष्ट्रीय भाषा के रूप में विकसित किये जाने के साथ साथ, हिंदी को अंग्रेजी के समक्ष खड़ा किया जा सके और देश में अंग्रेजी के वर्चश्व को धीरे धीरे समाप्त किया जा सके।
इस तरह के अंतर्विरोध होते रहे हैं और होते रहेंगे, परिवर्तनकारी निर्णय लेना हमेशा का कठिन होता है।
सरकार को अडिग रहना चाहिए, व नीति को सख्ती से धरातल पर ले जाने की योजना बनानी चाहिए।
ये मेरे अपने विचार हैं, आपका सर्मथन/असमर्थन स्वीकार है।
©रोहित त्रिपाठी रागेश्वर
Tuesday, April 7, 2020
मॉलिक्यूल-शिक्षा में भाषा
एक देश के दो व्यक्तियों को आपस में बात करने के लिए किसी दूसरे देश की भाषा का प्रयोग करना पड़ रहा है’,वही दूसरी तरफ मुझे ये भ्रम होना शुरू हो गया था कि सामने वाले की अंग्रेजी मुझे ज्यादा अच्छी है इसलिए शायद मैं उनकी पूरी बात नही समझ पा रहा हूँ| इस भ्रम ने मुझमे एक तरह का अविश्वास पैदा कर दिया| फिर मुझे लोगों से बात करने में झिझक होने लगी| परिणाम स्वरूप मैं ज्यादातर सिर्फ सिर्फ अपने प्रदेश के लोगों तक ही रहने लगा या सिर्फ उन लोंगों से बात करता था जो मुझसे हिंदी में बात करते थे| हम सब अपनी शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त अनेको तरह की समस्याओं पर विमर्श के लिए इकठ्ठा हुए थे| अतः उन् पांच दिनों में देश की शिक्षा व्यवस्था के बारे में बड़े बड़े विद्वानों के अप्रतिम व्याख्यान हुए| लेकिन क्यूंकि सब के सब अंग्रेजी में बोले जा रहे थे, मुझे 1-2 % बातें ही समझ में आयी होंगी| मेरे लिये आचरज की बात ये थी कि मृदुला दीदी जो कि हमारी प्रदेश अध्यक्ष थी उन्होंने ने भी अपना सारा संबोधन अंग्रेजी में ही दिया| उस समय मेरे मन में, उन व्याख्यानों के अंग्रेजी में होने को लेकर कोई विरोधाभास नही पैदा होता था| मैं सोचता था यही वातारवरण है जिससे आने वाले समय में मेरी अंग्रेजी और बेहतर हो पायेगी और मैं अपने विज्ञान के पाठ्यक्रम में कुछ अच्छा कर पाउँगा| मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है, कि सिर्फ एक मॉलिक्यूल शब्द ने मुझे तीन साल तक भ्रम में रखा था| ये बात अक्सर मैं अपने कॉलिज के दोस्तों के साथ साझा भी करता हूँ| डाक्टर अर्चना पाण्डेय मैडम केमिस्ट्री विभाग में आर्गेनिक केमिस्ट्री की प्रोफेसर थीं, और वो हम सब के प्रति बहुत ही समर्पित भी रहती थीं| जहाँ एक ओर कुछ प्रोफेसर अपनी क्लास लेने से भी कतराते थे, वहीँ वो खूब एक्स्ट्रा क्लासेज लिया करती थीं, और कुछ चैप्टर्स के लिए वो विशेष रूप से पुराने रिटायर्ड प्रोफेसर्स को भी आमंत्रित करती थीं| लेकिन अक्सर वो रिएक्शन बढ़ाते समय मॉलिक्यूल शब्द का प्रयोग करती थी| मुझे यह शब्द सुनने में बहुत ही अच्छा लगता था और मुझे लगता था कि मैं इस शब्द के बारे में सबकुछ जानता और समझता हूँ| मैं रिएक्शन की प्रक्रिया और क्रियाविधि समझ लेता था उतने से मेरा काम चल जाता था| जब कभी क्लास में एटम शब्द का इस्तेमाल होता तो मुहे समझ में आ जाता था कि परमाणु की बात हो रही है और मुझे कोई दिक्कत नही होती थी| मैं BSc तृतीय वर्ष में पहुच चुका था और एक दिन अचानक से मुझे लगा की चलो देखते हैं कि मॉलिक्यूल को हिंदी में क्या कहते हैं| मुझे लगता था की मैं मॉलिक्यूल के बारे में सबकुछ जनता हूँ क्यूंकि मैंने अंग्रेजी में मॉलिक्यूल परिभाषा रट ली थी| मैंने भर्गवा की डिक्शनरी खोली और देखा मॉलिक्यूल का अर्थ ‘अणु’ होता है| उस क्षण मुझे लगा कि इस एक शब्द ने मेरी केमिस्ट्री की दुनिया ही बदल दी| अब मुझे मॉलिक्यूल शब्द सुनने में भले ही बिलकुल अच्छा नही लग रहा था| लेकिन अब मैं सारी रिएक्शन, किसी को भी समझा सकता था| जो मुझे कल तक रटनी पडती थी, और मुझे लगता था कि मैंने सबकुछ समझ लिया है| अब मैं मॉलिक्यूल की परिभाषा खुद बना सकता था| आज मैं अच्छी अंग्रेजी पढ़, लिख और बोल लेता हूँ| परन्तु जब भी मुझे कहीं भी मॉलिक्यूल शब्द मिलता है| वही पुरानी टीस मेरे अन्दर उठती है|
मुझे इस बात का बेहद अफ़सोस है कि हमे अंग्रेजी भाषा पढाये जाने कि बजाय हमे सबकुछ अंग्रेजी भाषा में पढ़ा दिया जाता है| हम इस दौड़ में ना जाने कब पड़ जाते हैं हमे पता ही नही चलता, हम कब दैनिक जागरण छोड़कर द हिन्दू पढने लगते हैं, ‘गुनाहों का देवता, छोड़कर ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ पढने लगते हैं? हमे पता ही नही चलता, लेकिन एक उलझन जरूर होती है| कई कई पेज बिना समझ में आये भी इस चक्कर में पढ़ जाते हैं कि अभी नही समझ आ रहा है बाद में आने लगेगा| हम हिंदी फिल्मे छोड़कर सबटाइटल वाली अंग्रेजी फिल्मे देखने लगते हैं ताकि हमारा अंग्रेजी का उच्चारण सही हो सके| मैं ये नही कह रहा की हमारे लिए ये सब करना बुरा है, लेकिन हमें ये करना पड़े ऐसी बाध्यता नही होनी चाहिए|
जब हम किसी भाषा को सीखने के लिए उस भाषा में ही चीजें पढने है तो हमे भाषा तो आ जाती है, परन्तु हम वो ज्ञान नही प्राप्त कर पाते जो शायद हमे प्राप्त होता अगर हम उन चीजों को अपनी भाषा में पढ़ते|आज अंग्रेजी हमारे देश में बाध्यता हो गयी है| स्पोकन इंग्लिश, प्रतियोगी इंग्लिश, शशि थरूर इंग्लिश इत्यादी हमारे देश के होनहार विद्यार्थियों पर सिर्फ इस लिए थोपी जा रही है क्यूंकि हमारा देश अनाधिकारिक रूप से अंग्रेजी राष्ट्र हो चला है
| हमारे लिए अंग्रेजी भाषा, माध्यम नही, आधार है, सामाजिक दर्जे का आधार, नौकरी प्राप्त करने का आधार, न्याय प्राप्त करने का आधार, इत्यादी|
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
Thursday, October 10, 2019
A Subversive Teacher
A Subversive Teacher
-
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तमिलनाडु सरकार ने त्रिभाषिक प्रणाली का विरोध किया है। "मैं हमेशा से ये कहता आया हूँ, कि यदि एक देश के दो ल...
-
साल 2014, मैं इलाहबाद विश्वविद्यालय में BSc. द्वितीय वर्ष का छात्र था | विश्वविद्यालय में अनेको छात्र संगठन कार्यरत थे , और मैं भी उनमे से...
-
मेरी उम्र शायद 7-8 साल या उससे कम रही होगी। उस समय हमारे घर मे ब्लैक&व्हाइट TV होती थी। वर्तमान समय की तरह ही उस समय भी गांवों में बि...