Wednesday, May 12, 2021

बिजली का पहला झटका

मेरी उम्र शायद 7-8 साल या उससे कम रही होगी। उस समय हमारे घर मे ब्लैक&व्हाइट TV होती थी। वर्तमान समय की तरह ही उस समय भी गांवों में बिजली आने जाने का कोई तय समय नही होता था। उस समय इन्वर्टर वगैरह होते थे या नही ये तो नही पता, होते भी रहे होंगे तो हमारे घर वाले इतने भौतिक माइंडसेट के नही रहे होंगे या फिर हमारे घर वालों के बजट से बाहर रहा होगा। फिर भी नेशनल और मेट्रो चैनल के धारावाहिक, कुंती, इंस्पेक्टर विजय, रामायण, शक्तिमान और रविवार को आने वाली फिल्में इतना महत्व रखती थीं कि बिजली के भरोसे रहकर उनका एपिसोड नही छोड़ा जा सकता था। इसलिए 200 वोल्ट की एक चार्जबल बैटरी की व्यवस्था होती थी। पहले दो तीन महीने तक तो बैटरी बगल के एक घर मे किराये पर चार्ज करवाई जाती रही, लेकिन फिर कई बार इस बात को नोटिस किया गया कि जिन लोगों को बैटरी चार्ज करवाने की जिम्मेदारी होती थी, कई बार उनकी लापरवाही और आलस्य के चक्कर मे एपिसोड छूट गए। अतः ये निश्चित हुआ कि क्यों न चार्जर ही ले लिया जाए, हर दूसरे दिन चार्जिंग में 5 रुपये भी बचेंगे और लाने, ले जाने की कवायद भी नही रहेगी। चार्जर आ गया, और सब कुछ ठीक से चलने लगा। इसी बीच मुझे 'जूनियर जी' देखने का शौक लग गया। अब एक दिन ऐसा आया कि चार्जर में कुछ खराबी गयी, और उसे इलेक्ट्रिशियन की दुकान पर रिपेयर के लिए पहुंचा दिया गया। और कई अलग अलग धारावाहिक में इस्तेमाल होने के बाद बैटरी का चार्ज भी खत्म हो गया। अब , मुझे लगा कि अगर बिजली गयी तो मेरा जूनियर जी का एपिसोड छूट जाएगा, स्टेबलाइजर से TV चल रही थी, मैने कई लोगों को ये कहते सुना था, कि चार्जर और स्टेबलाइजर दोनों में ट्रांसफॉर्मर ही मुख्य भूमिका निभाता है। चार्जर और ट्रांसफार्मर का ऊपरी बॉक्स भी लगभग एक समान होता था। तो मेरे दिमाग मे ये ख्याल आया कि क्यों न स्टेबलाइजर से ही बैटरी चार्ज कर लिए जाए, क्यों कि दोनों में होता तो ट्रांसफॉर्मेर ही है, बस इसमें बैटरी की खूंटी से जोड़ने के लिए अलग से तार नही है- अतः मैंने एक व्यवस्था बनाई एक तार को चिमटी से जोड़ा, चिमटी को बैटरी की खूंटी से जोड़ा, और उस तार को स्टेबलाइजर के पीछे के पोर्ट में तार को लगा दिया। और जैसे ही चिमटी को एडजस्ट करने की कोशिश की मेरा पूरा शरीर झन्न हो गया, ये मेरा पहला मौका था, लेकिन मैं तुरंत समझ गया कि ये बिजली का झटका था, और अब मेरी हिम्मत नही हो रही थी कि चिमटी को निकाल के बैटरी को खराब या ब्लास्ट होने से बचा सकूँ। मैंने किसी तरह कुछ जुगत लगा के प्लास्टिक या, डंडे से आगे की कार्यवाही को अंजाम दिया। लेकिन उस डर के बाद से आज तक मैंने कभी भी इन तरह के प्रयोग करने की कोशिश नही की। हालांकि करंट के छोटे मोटे झटके और भी कई बार समय के साथ लगे, लेकिन वो इस तरह के प्रयोगों के नतीजा नही थे। अब मुझे महसूस होता है कि यदि उस दिन ये बिजली का झटका नही लगा होता तो मुझमे डर नही आता। डर आता तो मैं ऐसे प्रयोग करता रहता। यदि मैं ऐसे प्रयोग करता रहता तो आज मैं बिना किसी ईंधन के प्रयोग के बिजली पैदा करने वाला एक यंत्र जरूर बना चुका होता। पूरा पढ़ने के लिये धन्यवाद। ऐसे मनोरंजक और किस्सों के लिए मुझे फॉलो करें। Rohit Tripathi Rageshwar Rohit Tripathi

Saturday, May 1, 2021

विद्रोह के स्वर

उठ रहे हैं विद्रोह के स्वर, खेतों में पड़ी धान की बालियों से। खेतों में पड़ी धान की बालियों को पता चला है कि उन्हें अभी-अभी अपनी जड़ से इसलिए अलग कर दिया गया क्यूंकि उनको उगाने वाले किसान को अपना और अपने बच्चों का पेट पालना है। खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं क्यूंकि उन्हें पता चला है- कि उन्हें उनकी परालियों से भी अलग कर दिया जायेगा। खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं क्यूंकि उन्हें पता चला है- कि उन्हें मशीनों में डालकर उनकी चमड़ी उघेड़ी जायेगी। खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं क्यूंकि उन्हें पता चला है- कि परालियों से अलग करके मशीनों में डालकर उनकी चमड़ी उघेडकर, उन्हें बेच दिया जायेगा, किसी और के हाथ। उसके हाथ जिसने कभी खेतों मे धान की बुआई नही देखी उसके हाथ जिसे ये भी नही पता की धान उगाने मे कितने दिन लगते हैं, या फिर ये की ‘चावल’ धान की उघेड़ी हुयी चमड़ी की शक्ल को कहते हैं। खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं इसलिए क्यूंकि उन्हें पता चला है कि वो उसके हाथ बेचीं जा रही हैं जो अक्सर अपनी प्लेट में भूख ज्यादा चावल ले लेता है और फिर बचे हुए चावल को कूड़ेदान में डाल देता है| खेतों में पड़ी धान की बालियाँ विद्रोह के स्वर ऊँचे कर रही हैं इसलिए नही की उन्हे उनकी परालियों से अलग कर दिया जाएगा। इसलिए भी नही कि उन्हें मशीन में डालकर उनकी चमड़ी उघेड़ी जाएगी। इसलिए भी नही की उन्हें बेच किया जायेगा उसके हाथ जिसे उनके बारे में कुछ नही पता| धान की बालियाँ विद्रोह कर रही हैं इसलिए क्यूंकि उन्हें पराली से अलग करके, उनकी चमड़ी उघेड के, उन्हें किसी अनजान के हाथो बेचकर उन्हें बेवजह कूड़े में डाल दिया जाएगा, और उनको उगाने वाला किसान उस दिन भी भूखे पेट सोयेगा जब वो कूड़ेदान में सड़कर प्रकृति को नुकसान पहुंचा रही होंगी| उठ रहे हैं विद्रोह के स्वर, इसलिए कि अब वक़्त आ गया है विद्रोह का.... -रोहित त्रिपाठी रागेश्वर