Tuesday, April 7, 2020

मॉलिक्यूल-शिक्षा में भाषा

साल 2014, मैं इलाहबाद विश्वविद्यालय में BSc. द्वितीय वर्ष का छात्र था| विश्वविद्यालय में अनेको छात्र संगठन कार्यरत थे, और मैं भी उनमे से एक का सदस्य था| संगठन ने सितम्बर महीने में भोपाल में एक अखिल भारतीय छात्र सम्मलेन का आयोजन किया, जिसमे मैं भी शामिल हुआ| 25 सितम्बर की सुबह 7 बजे ट्रेन से पूरी टीम वाराणसी गयी| वाराणसी में भोजन और विश्राम के बाद, टीम कामायनी एक्सप्रेस से भोपाल के लिए रवाना हई|  वाराणसी में ही संगठन के अन्य जिलों के साथी भी शामिल हो लिये| ट्रेन सुबह 6 बजे भोपाल जंक्शन पहुची| फिर हमसब पद यात्रा करते हुए, धर्मशाला में पहुचे, जहाँ पर हमारे 5 दिन रहने और खाने की व्यवस्था की गयी थी| धर्मशाला पहुचकर मेरा मन अत्यंत सुखद अनुभूति कर रहा था क्यूंकि मेरे लिए यह पहला अवसर था, जब मैं इलाहाबाद (प्रयागराज) से बाहर गया था| मुझे यह देखकर अत्यंत ख़ुशी हो रही थी कि हमारी धर्मशाला में देश के चार राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, और गुजरात के छात्र थे| एकतरफ जहाँ मेरे सभी साथी नास्ता करके विश्राम करने लगे, वहीँ मैं अलग अलग राज्यों के साथियों से बात करने में मसगूल था| मुझे उनसे बात करने में अत्यंत उत्साह मिल रहा था| उन सब के बात करने के अलग अलग तरीके और उनकी ध्वनियों के विशेष उतार चढ़ाव से, जो एक नई हिन्दी सुनने को मिल रही थी, वह मुझे रोमांचित कर रही थी| उनके प्रदेशों की भाषाएँ अलग थीं और वो मुझसे हिंदी में शायद इसलिए बात कर रहे कि मैं उनसे हिंदी में बात कर रहा था या शायद इसलिए क्यूंकि मैं उन्हें ये भी बताता था कि मैं उत्तर प्रदेश से हूँ| पहले दिन का कार्यक्रम सिर्फ सड़क पर रैली निकलना था| दोपहर 12 बजे के करीब सब तैयार होकर लइनों में चलते हुए एक पार्क में इक्कट्ठा हुए| पूरे देश से लगभग दश हजार से भी अधिक छात्र इस कार्यक्रम का हिस्सा बन रहे थे| यह देखकर मैं बेहद उत्सुक था और हर किसी से बात करना चाहता था| इस उत्साह ने मेरे अन्दर की सारी झिझक को ख़तम कर दिया था| मैंने कई लडकों और लड़कियों से बात करने की कोशिश लेकिन उनको हिंदी, और मुझे उनकी भाषा न आने की वजह से हमें अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना पड रहा था, ज़ाहिर है जितनी अच्छी अंग्रेजी मेरी थी उतनी ही उनकी भी रही होगी, अतः कोई भी बातचीत ज्यादा देर तक नही चलती| हम पूरा दिन सड़कों बैनर और झंडियों के साथ टहलते रहे और मैं नए नए लोगों से बातचीत करता रहा| इस बीच जहाँ मुझे एक बात बहुत ज्यादा खटक रही थी कि, ‘
एक देश के दो व्यक्तियों को आपस में बात करने के लिए किसी दूसरे देश की भाषा का प्रयोग करना पड़ रहा है’,
वही दूसरी तरफ मुझे ये भ्रम होना शुरू हो गया था कि सामने वाले की अंग्रेजी मुझे ज्यादा अच्छी है इसलिए शायद मैं उनकी पूरी बात नही समझ पा रहा हूँ| इस भ्रम ने मुझमे एक तरह का अविश्वास पैदा कर दिया| फिर मुझे लोगों से बात करने में झिझक होने लगी| परिणाम स्वरूप  मैं ज्यादातर सिर्फ सिर्फ अपने प्रदेश के लोगों तक ही रहने लगा या सिर्फ उन लोंगों से बात करता था जो मुझसे हिंदी में बात करते थे| हम सब अपनी शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त अनेको तरह की समस्याओं पर विमर्श के लिए इकठ्ठा हुए थे| अतः उन् पांच दिनों में देश की शिक्षा व्यवस्था के बारे में बड़े बड़े विद्वानों के अप्रतिम व्याख्यान हुए| लेकिन क्यूंकि सब के सब अंग्रेजी में बोले जा रहे थे, मुझे 1-2 % बातें ही समझ में आयी होंगी| मेरे लिये आचरज की बात ये थी कि मृदुला दीदी जो कि हमारी प्रदेश अध्यक्ष थी उन्होंने ने भी अपना सारा संबोधन अंग्रेजी में ही दिया| उस समय मेरे मन में, उन व्याख्यानों के अंग्रेजी में होने को लेकर कोई विरोधाभास नही पैदा होता था| मैं सोचता था यही वातारवरण है जिससे आने वाले समय में मेरी अंग्रेजी और बेहतर हो पायेगी और मैं अपने विज्ञान के पाठ्यक्रम में कुछ अच्छा कर पाउँगा| मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है, कि सिर्फ एक मॉलिक्यूल शब्द ने मुझे तीन साल तक भ्रम में रखा था| ये बात अक्सर मैं अपने कॉलिज के दोस्तों के साथ साझा भी करता हूँ| डाक्टर अर्चना पाण्डेय मैडम केमिस्ट्री विभाग में आर्गेनिक केमिस्ट्री की प्रोफेसर थीं, और वो हम सब के प्रति बहुत ही समर्पित भी रहती थीं| जहाँ एक ओर कुछ प्रोफेसर अपनी क्लास लेने से भी कतराते थे, वहीँ वो खूब एक्स्ट्रा क्लासेज लिया करती थीं, और कुछ चैप्टर्स के लिए वो विशेष रूप से पुराने रिटायर्ड प्रोफेसर्स को भी आमंत्रित करती थीं| लेकिन अक्सर वो रिएक्शन बढ़ाते समय मॉलिक्यूल शब्द का प्रयोग करती थी| मुझे यह शब्द सुनने में बहुत ही अच्छा लगता था और मुझे लगता था कि मैं इस शब्द के बारे में सबकुछ जानता और समझता हूँ| मैं रिएक्शन की प्रक्रिया और क्रियाविधि समझ लेता था उतने से मेरा काम चल जाता था| जब कभी क्लास में एटम शब्द का इस्तेमाल होता तो मुहे समझ में आ जाता था कि परमाणु की बात हो रही है और मुझे कोई दिक्कत नही होती थी| मैं BSc तृतीय वर्ष में पहुच चुका था और एक दिन अचानक से मुझे लगा की चलो देखते हैं कि मॉलिक्यूल को हिंदी में क्या कहते हैं| मुझे लगता था की मैं मॉलिक्यूल के बारे में सबकुछ जनता हूँ क्यूंकि मैंने अंग्रेजी में मॉलिक्यूल परिभाषा रट ली थी| मैंने भर्गवा की डिक्शनरी खोली और देखा मॉलिक्यूल का अर्थ ‘अणु’ होता है| उस क्षण मुझे लगा कि इस एक शब्द ने मेरी केमिस्ट्री की दुनिया ही बदल दी| अब मुझे मॉलिक्यूल शब्द सुनने में भले ही बिलकुल अच्छा नही लग रहा था| लेकिन अब मैं सारी रिएक्शन, किसी को भी समझा सकता था| जो मुझे कल तक रटनी पडती थी, और मुझे लगता था कि मैंने सबकुछ समझ लिया है| अब मैं मॉलिक्यूल की परिभाषा खुद बना सकता था| आज मैं अच्छी अंग्रेजी पढ़, लिख और बोल लेता हूँ| परन्तु जब भी मुझे कहीं भी मॉलिक्यूल शब्द मिलता है| वही पुरानी टीस मेरे अन्दर उठती है|
मुझे इस बात का बेहद अफ़सोस है कि हमे अंग्रेजी भाषा पढाये जाने कि बजाय हमे सबकुछ अंग्रेजी भाषा में पढ़ा दिया जाता है
| हम इस दौड़ में ना जाने कब पड़ जाते हैं हमे पता ही नही चलता, हम कब दैनिक जागरण छोड़कर द हिन्दू पढने लगते हैं, ‘गुनाहों का देवता, छोड़कर ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ पढने लगते हैं? हमे पता ही नही चलता, लेकिन एक उलझन जरूर होती है| कई कई पेज बिना समझ में आये भी इस चक्कर में पढ़ जाते हैं कि अभी नही समझ आ रहा है बाद में आने लगेगा| हम हिंदी फिल्मे छोड़कर सबटाइटल वाली अंग्रेजी फिल्मे देखने लगते हैं ताकि हमारा अंग्रेजी का उच्चारण सही हो सके| मैं ये नही कह रहा की हमारे लिए ये सब करना बुरा है, लेकिन हमें ये करना पड़े ऐसी बाध्यता नही होनी चाहिए|
जब हम किसी भाषा को सीखने के लिए उस भाषा में ही चीजें पढने है तो हमे भाषा तो आ जाती है, परन्तु हम वो ज्ञान नही प्राप्त कर पाते जो शायद हमे प्राप्त होता अगर हम उन चीजों को अपनी भाषा में पढ़ते|
आज अंग्रेजी हमारे देश में बाध्यता हो गयी है| स्पोकन इंग्लिश, प्रतियोगी इंग्लिश, शशि थरूर इंग्लिश इत्यादी हमारे देश के होनहार विद्यार्थियों पर सिर्फ इस लिए थोपी जा रही है क्यूंकि हमारा देश अनाधिकारिक रूप से अंग्रेजी राष्ट्र हो चला है
| हमारे लिए अंग्रेजी भाषा, माध्यम नही, आधार  है, सामाजिक दर्जे का आधार, नौकरी प्राप्त करने का आधार, न्याय प्राप्त करने का आधार, इत्यादी|
(यह संस्मरण नई शिक्षा निति में आये एक वाक्य “प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए से प्रेरित है)
                                                            -रोहित त्रिपाठी
                                                            प्रयागराज उत्तर प्रदेश